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कोई मुझे पुकार रहा है / श्यामनन्दन किशोर
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”कोई मुझे पुकार रहा है!
जाना होगा! जाना होगा!!
पपीहरा के पिया-पिया से,
जड़-चेतन के हिया-हिया से,
भेज कौन संदेश रहा है,
मुझको ध्यान लगाना होगा!
जाना होगा! जाना होगा!
तरु-तरु के मोहक मर्मर से,
पल्लव-टहनी के मृदुकर से,
कोई मुझे बुलावा देता,
निश्चय पैर बढ़ाना होगा!
जाना होगा! जाना होगा!
ले आँखों में सावन के घन,
प्राणों में बिजली की तड़पन
कोई मुझे दुलार रहा है,
जाकर नेह निभाना होगा!
जाना होगा! जाना होगा!
संघर्षों से मैं मुँह मोड़े,
सबसे नाता-रिश्ता तोड़े,
बन्धन से ही भाग रहा था,
अब तो नीड़ बसाना होगा!
जाना होगा! जाना होगा!!
(1.5.54)