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अब न रहा जीवन-घट रीता / श्यामनन्दन किशोर
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अब न रहा जीवन-घट रीता।
सरित प्यार का हर सीकर है।
रस-अथाह मेरा अन्तर है।
जलन-तपन की ऋतु लो बीती,
प्यास-भरा वह दुर्दिन बीता!
भला न लगता जग को हँसना।
और, किसी दो दिल का बसना।
पर मैंने तो दुर्बलता से
ही दुनिया के मन को जीता!
(12.5.54)