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देख रहा नयनों का दर्पण / श्यामनन्दन किशोर

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देख रहा नयनों का दर्पण।

भले तुम्हारे बन्द अधर हैं,
फिर भी आकुल प्यार मुखर है।

झुकी पलक भी कह देती है,
मन का चिर गोपन सम्भाषण।
देख रहा नयनों का दर्पण।

कैसे कहूँ दुराव तुम्हें प्रिय!
लगता सदा अभाव तुम्हें प्रिय!

तुम चुप हो, चुप रहो;
कह रही सब कुछ है प्राणों की धड़कण
देख रहा नयनों का दर्पण।

अजब नयन के शीशे झलमल!
बिम्बित होते मन भी चंचल!

यौवन का मधुमास बन रहा
हाय, आज आँखों का सावन!
देख रहा नयनों का दर्पण।

(5.9.54)