Last modified on 27 अक्टूबर 2015, at 00:41

मैं बजता हूँ ... / श्यामनन्दन किशोर

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:41, 27 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्यामनन्दन किशोर |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं बजता हूँ किन्तु निकलती तुमसे है झंकार!
बीन बजाना भूल गया मैं,
जब से मन ही तार बन गया।
छोड़ी तट की आशा, जब से
जीवन ही मझधार बन गया।

मैं गाता हूँ, किन्तु गीत के तुम केवल आधार!

नित मजार पर गगन दिवस के,
देता अगणित कुसुम चढ़ा रे!
पर रजनी-रानी के बनते
शशि, बिन्दी, ये हार सितारे!

मैं सजता हूँ, किन्तु देखता जग तुम में शृंगार!

डगमग पग ये, थका बटोही,
पंथ अश्रु-बूँदों से पंकिल!
मिलन तुम्हारा ही तो मेरे
एक मात्र जीवन की मंजिल!

मैं खेता हूँ नाव, मगर तुम हो मेरा उस पार!

(5.5.54)