तुम न आओगी, तुम्हारी याद आती ही रहेगी!
टिक सके अरमान के हैं
महल बे-बुनियाद किसके?
कठिन घड़ियों में विरह की
घर हुआ आबाद किसके?
पर तुम्हारी सुधि तुम्हें नित पास लाती ही रहेगी!
तुम गयी उपहार मेरे
प्राण को पतझार देकर।
औ’ सुकोमल पलक-दल पर
आँसुओं का भार देकर।
पर जवानी मिलन के सपने सजाती ही रहेगी!
एक-सा यह तिमिर छाये
जा रहा मन पर, गगन पर।
किन्तु, मेरी आँख शत-शत
स्नेह की मधु बूँद भरकर-
नित तुम्हारी राह में दीपक जलाती ही रहेगी!
तुम न आओगी, तुम्हारी याद आती ही रहेगी!
(15.5.54)