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यह शिशिर की साँझ / श्यामनन्दन किशोर
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यह शिशिर की साँझ, आयी याद तेरी
है उमर-भर की कमाई याद तेरी!
यह शिशिर की साँझ, पूनो है रही जम,
यह शिशिर की साँझ, सरगम है रहा थम
दूर सूने में कहीं जा यह क्षितिज-
सिहर धरती के अधर पर है रहा नम।
ज्यों नदी के पार शहनाई बजी हो,
है पड़ी मुझको सुनायी याद तेरी!
याद तेरी, ग्रीष्म की बरसात-जैसी।
याद तेरी, विरह की सौगात-जैसी।
घोर पावस में बरसकर फट गयी ज्यों,
याद तेरी, उस दुधैली रात जैसी।
निखरती जो खरा-कुन्दन-सी
भाग्य-ज्वाला में तपायी याद तेरी!
तार टूटे, है मगर झंकार बाकी
शिल्प बिखरा, है मगर आकार बाकी!
याद तेरी चिर वियोगिन ज्यों सुहागिन का करुण
है आखिरी शृंगार बाकी!
शीत की पुरवा, तिमिर की ओट में
कुनमना कर कसमसाई याद तेरी!
(28.12.73)