भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सामन आयौ बहना मेरी रँगीला / ब्रजभाषा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:57, 27 नवम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=ब्रजभाष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सामन आयौ बहना मेरी रंगीला जी,
एजी कोई आई हरियाली तीज॥ 1॥
कारे पीरे बदरा लगत सुहावने जी,
ऐजी कोई घटा उठी हैं घनघोर॥ 2॥
बादल गरजे चमके बीजुरी जी,
ऐजी कोई मोर करें बन शोर॥ 3॥
नहनी 2 बुँदियाँ मेहा बरसते जी,
ऐजी कोई पवन चलै झकझोर॥ 4॥
कोयल कूके हरियल डार पैजी,
ऐजी कोई दादुर कर रहे शोर॥ 5॥
पापी पपिया पिया 2 मति करे जी,
ऐजी तेरी डारूँगी पंख मरोर॥ 6॥
मेरे पिया तो छाये परदेश में जी,
एजी मेरौ जोबन लेत हिलोर।