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प्यार न यदि तेरा पाऊँगा / जनार्दन राय

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लगता उदास हूँ अभी, किसी दिन मर जाऊँगा
सच कहता हूँ प्यार न यदि तेरा पाऊँगा।

भूल गया था स्वर्गिक सुख तुमको ही पाकर,
भूल गया था जीवन-दुख तुमको अपना कर।
दया दृष्टि गर आज नहीं तेरी पाऊँगा,
तुम्हीं बताओ कहाँ ठौर अपना पाऊँगा?
लगता उदास हूँ अभी, किसी दिन मर जाऊँगा,
सच कहता हूँ प्यार न यदि तेरा पाऊँगा।

तुममें औ अपने में कभी न अन्तर जाना,
हो जाओगे कभी पराये कभी न माना।
अन्तर-रेखा आज कहीं जो लख पाऊँगा,
तुम्हीं बताओ कहां बास अपना पाऊँगा,
लगता उदास हूँ अभी, किसी दिन मर जाऊँगा,
सच कहता हूँ प्यार न यदि तेरा पाऊँगा।

स्नेह सलिल से जीवन-उपवन हरा हुआ था,
प्यार वारि से मैं भी - पौधा पनपाया था।
उपवन-पौधा अगर आज सूखा पाऊँगा,
तुम्हीं बताओ कहां मान अपना पाऊँगा,
तुम्हीं बताओ कहां मान अपना पाऊँगा।
लगता उदास हूँ अभी, किसी दिन मर जाऊँगा,
सच कहता हूँ प्यार न यदि तेरा पाऊँगा।

पूछ रहा जग बार-बार लगते उदास क्यों?
मन मारे तुम मौन कहो लगते हतास क्यों?
कहीं अगर इसका उत्तर सच दे डालूंगा,
तुम्हीं बताओ कैसे जीवित रह पाऊँगा,
लगता उदास हूँ अभी, किसी दिन मर जाऊँगा,
सच कहता हूँ प्यार न यदि तेरा पाऊँगा।

प्यार-बीज जिसने भी बोया दुख पाया है,
खोजा जिसने अमृत प्यार में विष पाया है।
पर न यदि अपवाद न इसका बन पाऊँगा,
तुम्हीं बताओ खुशी कहां अपनी पाऊँगा?
लगता उदास हूँ अभी, किसी दिन मर जाऊँगा,
सच कहता हूँ प्यार न यदि तेरा पाऊँगा।

जग ने लाख सताया कभी न मैं रो पाया,
पाकर तेरा प्यार सदा दुख में भी गाया।
आज अगर आँखें गीली मैं कर पाऊँगा,
तुम्हीं बताओ कहाँ छिपाने मैं जाऊँगा?
लगता उदास हूँ अभी, किसी दिन मर जाऊँगा,
सच कहता हूँ प्यार न यदि तेरा पाऊँगा।

भूली कितनी बात याद आने लगती हैं,
बीती कितनी रात काट खाने लगती हैं।
इतने पर भी गीत न अपना लिख पाऊँगा,
तुम्हीं बताओ कैसे गायक हो पाऊँगा?
लगता उदास हूँ अभी, किसी दिन मर जाऊँगा,
सच कहता हूँ प्यार न यदि तेरा पाऊँगा।

वाणी दी जिसने मेरी प्यारी भाषा को,
स्वर का दान दिया जिसने मेरे कंठों को।
अगर कहीं उसको ही रुठा मैं पाऊँगा,
तुम्हीं बताओ क्या कविता मैं लिख पाऊँगा?
लगता उदास हूँ अभी, किसी दिन मर जाऊँगा,
सच कहता हूँ प्यार न यदि तेरा पाऊँगा।

बड़े-बड़े अरमानों के जो महल बने हैं,
तेरे ही कारण सब जिसमें चहल-पहल है।
अगर कहीं उनको ही ढहता लख पाऊँगा,
बोलो निष्ठुर जग में कैसे जी पाऊँगा?
लगता उदास हूँ अभी, किसी दिन मर जाऊँगा,
सच कहता हूँ प्यार न यदि तेरा पाऊँगा।

तुम न मिलोगे कहो सिद्धि कैसे पाऊँगा,
मुनि विरचित रामायण को केसे गाऊँगा?
मैत्री का प्यार न शीतल मैं पाऊँगा,
सीता-राम शरण ही जाकर क्या पाऊँगा?
लगता उदास हूँ अभी, किसी दिन मर जाऊँगा,
सच कहता हूँ प्यार न यदि तेरा पाऊँगा।

यदि न तुम्हारे प्यार-गंग में डूब सकूँगा,
तो गंगा-तट जाकर ही मैं क्या पाऊँगा?
भारतेन्दु की गंगा इटलायेगी मुझ पर,
यदि अपनी गंगा को सूखी मैं पाऊँगा।
लगता उदास हूँ अभी, किसी दिन मर जाऊँगा,
सच कहता हूँ प्यार न यदि तेरा पाऊँगा।

मौन रहोगे तुम तो क्या मैं बोल सकूँगा?
क्या रस में विष तुम्हीं कहो मैं घोल सकूँगा?
फिर भी जब उपहास जगत का मैं पाऊँगा,
तुम्हीं बताओ नयन रिक्त क्या रख पाऊँगा?
लगता उदास हूँ अभी, किसी दिन मर जाऊँगा,
सच कहता हूँ प्यार न यदि तेरा पाऊँगा।

अपने मन का भाव लिखा जैसा समझा मैं,
अपने दिल का दर्द लिखा जैसा जाना मैं।
इतने पर भी कृपा न यदि तब पा पाऊँगा,
क्या सुख का संसार बसा मैं पा पाऊँगा।
लगता उदास हूँ अभी, किसी दिन मर जाऊँगा,
सच कहता हूँ प्यार न यदि तेरा पाऊँगा।

-दिघवारा,
9.8.1963 ई.