एक कथा है पानी की
बहता रहता है कथा का पानी भी
इतने सारे पानी के बारे में
कितना कुछ है कहना
कुछ कहने से पहले
फिर वही दीर्घ आलाप मैं लेता हूँ
जीभ की नोक से आखि़री जीवकोष तक
बिछ जाता है पानी का स्वाद
अमृत की तरह बहते हुए इसे पीना
जून में धुले हुए तौलिये को पाना है
कुछ गिलास पानी जिसे पसीने की तरह
जलना है खू़न में
इसके कई चित्र हैं
पनघट का प्राचीन बिम्ब
और बादल की शाश्वत तस्वीर के बाहर
प्यास की तरह सुलगती रहती हैं
उसकी स्मृतियाँ
उसे बुझाने के लिए हम मिट जाते हैं