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मेमने / हेमन्त कुकरेती
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ठण्डी हवा चलने पर
हवा से पहले निकलते हैं
मौसम को कोसने के लिए तय शब्द
स्त्रियों के मुख से
खाँसी से पहले खिचखिच करते पुराने स्वेटर
बाहर आ जाते हैं सन्दूकों से
चुराये हुए वक़्त में तन्मय होकर
सर्दी के खिलाफ़ डालते हुए फन्दे
मौसम की भूल को पकड़ती हैं स्त्रियाँ
स्वेटर में छिपे हैं आदमी के डर
कवच के नीचे पशु की पीड़ा है
आदमी इसे भी याद नहीं रखता
किसी और डर से...
याद करो, सिर झुकाये मेमने को याद करो
उसकी खाल में ही छुपे हैं उसके क्लेश
जो आये हैं
आदमी से दोस्ती के चलते
डरो कि मूक हमदर्दी है आदमी से उसकी
जो कि गँवा चुका है
अपनी हार्दिकता
विण्डचीटर<ref>सर्द हवा से बचानेवाला चमड़े का जैकेट</ref> के नीचे भी कहाँ छुपते हैं
उसके छल!
शब्दार्थ
<references/>