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समय समाप्त और बाक़ी है रास्ता / हेमन्त कुकरेती

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वज़नी हो जाता है हमें योग्य करार देनेवाले
क़ाग़ज़ों का पुलिन्दा
पाते हैं हम ख़ुद को सफल हो सकने की दौड़ में
पता नहीं कहाँ पहुँचना है हमें
पूछते हैं तो अपनी ही शिकायत घिघियाहट लगती है

हमें कर दिया जाता है घर से दूर
हमारे अन्दर बसा वह पराया हो जाता है इतना कि
फिर कुछ टूटने की आवाज हमें विचलित नहीं करती
हम एक दुनिया हो जाते हैं अलग निर्जन में उजाड़
खुद को अकेला मारने की आदत पड़ जाती है

दौड़ कहीं ख़त्म नहीं होगी हम सोचते हैं
और लगता है हम केवल परिचय-पत्र हैं
चेहरा हमारा पहनकर कोई सन्त हो गया कोई शैतान
और जैसे भी बन पड़ा दौड़ जीत गया

अँधेरे में भाग रहे होते हैं हम कि रिमोट थामे
अन्धा कर देनेवाले उजाले में
कोई बदल देता है हमारा चैनल
कई आदमियों में बँटकर लड़ने लगता है
हमारे भीतर का आदमी
अच्छी-भली भाषा बोलते-बोलते
डरावने हो जाते हैं हम अबूझ बोली में बदलकर

हमारा हुलिया लापता बच्चे का हो जाता है
दीवारों पर चिपकी होती है हमारी खाल
जिस आदमी को पता होता है कि हम भगौड़े नहीं हैं
हम दौड़ रहे हैं
वह जारी करता है दौड़ में जीते लोगों की सूची
उसके पैनल में कहीं नहीं होते हम

हम कराहते हैं कि
पहले से ही तय था कौन होंगे विजयी
तो हमें बहकाया क्यों?

वह आवाज़ गायब कर देता है हमारी
और सिस्टम से मिलती है हमें
आगामी दौड़ में सफल होने की शुभकामना!