Last modified on 20 दिसम्बर 2015, at 15:02

कमाल की औरतें २८ / शैलजा पाठक

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:02, 20 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलजा पाठक |अनुवादक= |संग्रह=मैं ए...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

खिड़कियों के पर्दे बंद करोगे
देह को परत दर परत खोलोगे

अपने हक की भाषा बोलोगे
मेरी ƒघुटी सांसों की खाली प्रार्थना
जमीन पर चप्पल सी औंधी रहेगी
तुम मसलते से निकल जाओगे

उभरे जख्मों से टीसेगा दर्द
मैं पट्टियां बांध रखूंगी

तुम थक कर आओगे
तुम परेशान हो जाओगे
खाली बोतलों में सुकून की ƒघूँट ना मिली तो
मैं पट्टियां खोल दूंगी
तुम जख्मों पर नमक से लिपट जाओगे

खिड़कियों के पर्दों पर आह सी सलवटें और मैं...।