भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कमाल की औरतें ३५ / शैलजा पाठक
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:44, 20 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलजा पाठक |अनुवादक= |संग्रह=मैं ए...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
देह की माटी पर
उगेंगे हरे पौधे
हवाओं की सीटियों से
कंपकपाएंगे नए पत्ते
थरथराती एक शाम
उकड़ू बैठेगी छांव तले
तुम धूप बन कर आना
मैं पेड़ की सबसे ऊंची फुनगी से गिरूंगी
बूंद बनकर
तुम्हारी हथेलियों में
तुम फिर माटी कर देना मुझे...।