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फ़कीरों की सदा-1 / नज़ीर अकबराबादी

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ज़र की जो मुहब्बत, तुझे पड़ जायेगी, बाबा।
दुःख उसमें तेरी रूह, बहुत पायेगी बाबा।
हर खाने को हर पीने को तरसाएगी बाबा।
दौलत जो तेरे यां है न काम आयेगी बाबा।
फिर क्या तुझे अल्लाह से मिलवाएगी बाबा॥1॥

दौलत जो तेरे पास है रख याद तू यह बात।
खा तू भी और अल्लाह की कर राह में ख़ैरात।
देने से रहे उसके तेरा ऊंचा सदा हात।
और यां भी तेरी गुजरेगी सौ ऐश से औक़ात।
और वां भी तुझे, सैर यह दिखलाएगी बाबा॥2॥

दौलत की यही खू़बी है, सौ नेमतें खा डाल।
कमख़्वाब पहन, बादला ओढ़ और बना डाल।
बाग़ो चमनो होज़ो इमारात बना डाल।
एक दम तो भला, खल्क़ में दरिया सा बहा डाल।
फिर वर्ना तुझे सैर, यह दिखलाएगी बाबा॥3॥

दाता की तो मुश्किल कोई अटकी नहीं रहती।
चढ़ती है पहाड़ों के ऊपर नाव सख़ी<ref>दानी</ref> की।
और तूने बख़ीली<ref>कंजूसी</ref> से, अगर जमा उसे की।
तो याद रख बात कि जब आवेगी सख्ती।
खुश्की में तेरी नाव यह डुबवाएगी बाबा॥4॥

दौलत जो तेरे घर में यह अब फूली है जूं फूल।
मरदूद<ref>छोटे, खराब</ref> भी करती है यह और करती है मक़बूल<ref>प्रिय</ref>।
जो चाहे तेरे साथ, चले यां से यह मजहूल।
जनहार खबरदार हो इस बात पै मत भूल।
यह खन्दी<ref>बदचलन</ref> तेरे साथ नहीं जाएगी बाबा॥5॥

क़स्बी<ref>रंडी</ref> यह पुरानी है न आ इसके तू छल में।
आज इसकी बग़ल में हैतो कल उसकी बग़ल में।
ठंडक नहीं पड़ने की कभी इसके तो झल में।
जब तन से तेरी जान निकल जावेगी पल में।
तू जावेगा और यह यहीं रह जाएगी बाबा॥6॥

गर नेक कहाता है, कर इस जाय कुछ एहसान।
हिन्दू को खिला पूरी, मुसलमां को खिला नान।
खा तू भी इसे शौक़ से, और ऐश पे रख ध्यान।
तू इसको न खावेगा, तो यह बात यकीं जान।
एक रोज़ यह खन्दी, तुझे खा जाएगी बाबा॥7॥

इससे यही बेहतर है तू ही अब इसे खा जा।
बेटों को, रफ़ीकों को अज़ीज़ों को खिला जा।
सब रूबरू अपने इसे इश्ररत में उड़ा जा।
फिर शौक़ से हंसता हुआ, जन्नत को चला जा।
वर्ना तुझे हर दुःख में, यह फंसवाएगी बाबा॥8॥

गर आवेगा हाकिम कोई ज़ालिम तो मेरी जान।
और तेरी सुनेगा वह बख़ीली की सी गुजरान।
जब खींच बुलावेगा लगाकर कोई तूफान।
तू जी से जिसे दोस्त समझता है यह सर आन।
यह दोस्त ही दुश्मन, तेरी हो जाएगी बाबा॥9॥

कोई कहेगा उसके तई बांध के लटका।
कोई कहेगा तूंबड़ा मुंह इसके में चढ़वा।
कोई कहेगा कपड़े भी सब इसके उतरवा।
सौ ज़िल्लतो ख़्बारी से तुझे देखके फिरता।
बंधवायेगी, और मार भी खिलवाएगी बाबा॥10॥

और जो कभी हाक़िम ने न पूछा तेरा अहवाल।
तो चोर चुरा लेवेगा, या डाका कोई डाल।
गाड़ेगा जमीं बीच, तो फिर होवेगा यह हाल।
क़िस्मत से तेरी, जब कभी आजावेगा भूचाल।
फिर नीचे ही नीचे, यह सरक जाएगी बाबा॥11॥

यह तो न किसी पास रही है, न रहेगी।
जो और से करती रही, वह तुझ से करेगी।
कुछ शक नहीं इसमें जो बढ़ी है सो घटेगी।
जब तक तू जियेगा, तुझे यह चैन न देगी।
और मरते हुए फिर यह ग़जब लाएगी बाबा॥12॥

जब मौत का होवेगा तुझे आनके धड़का।
और निज़अ<ref>मौत का समय</ref> तेरी आन के, दम देवेगी भड़का।
जब इसमें तू अटकेगा, न दम निकलेगा फड़का।
कुप्पां में रूपे डाल के जब देवेंगे खड़का।
जब तन से तेरे, जान निकल जाएगी बाबा॥13॥

तू लाख अगर माल के सन्दूक़ भरेगा।
है यह तो यकीं, आखिरश<ref>अन्त में</ref> एक दिन तो मरेगा।
फिर बाद तेरे इस पै जो कोई हाथ धरेगा।
वह नाच, मज़ा देखेगा और ऐश करेगा।
और रूह तेरी, कब्र में घबराएगी बाबा॥14॥

उसके तो वहां ढोलको मरदंग बजेगी।
और रूह तेरी, क़ब्र में हस्रत<ref>इच्छा</ref> से जलेगी।
वह खावेगा और तेरे तई आग लगेगी।
ताहश्<ref>रोजे़ कयामत तक</ref> तेरी रूह को, फिर कल न पड़ेगी।
ऐसा यह तुझे गोर में तड़पाएगी बाबा॥15॥

जूं जूं वह तेरे माल से इश्रत में पड़ेगा।
तू क़ब्र में रह-रह कफ़े अफ़सोस मलेगा।
जो चाहे कोई बोले तो फिर बस न चलेगा।
बेबस तू पड़ा क़ब्र में हस्रत से जलेगा।
दिन रात तेरी छाती को, कुढ़वाएगी बाबा॥16॥

जावेगा तेरी गोर<ref>क़ब्र</ref> की जानिब तो वह नागाह<ref>अचानक</ref>।
साक़ीयो<ref>शराब पिलाने वाला</ref> सुराहीयो परी ज़ाद के हमराह।
रोना मुझे आता है तेरे हाल पे वल्लाह।
जब देखेगा सौ ऐश में तू उसके तई आह।
क्या-क्या तेरी छाती पे यह लहरायेगी बाबा॥17॥

तू भूत हो छाती पे अगर आन चढ़ेगा।
तो वां भी तेरे वास्ते, आमिल<ref>अमल करने वाला, झाड़ फूंक करने वाला</ref> कोई बुलवा।
शीशे में उतरवा के तुझे देवेगे गड़वा।
या खू़ब सा सुलगा के कोई हाय, फ़तीहा।
धूनी भी तेरी नाक़ में दिलवाएगी बाबा॥18॥

गर होश है तुझ में तो बख़ीली<ref>कंजूसी</ref> का न कर काम।
इस काम का आखि़र को, बुरा होता है अंजाम।
थूकेगा कोई कहके, कोई देवेगा दुश्नाम<ref>गाली</ref>।
जनहार न लेगा कोई हर सुबह तेरा नाम।
पैजारे तेरे नाम पै लगवाएगी बाबा॥19॥

कहता है ”नज़ीर“ अब तो यह बातें तुझे हर आन।
गर मर्द है आक़िल तो इसे झूठ तू मत जान।
टुक ग़ौर से कर गंज<ref>खजाना</ref> पे कारूं के ज़रा ध्यान।
जैसा ही उसे उसने किया खू़ब परेशान।
वैसा ही मज़ा तुझको भी दिखलाएगी बाबा॥20॥

शब्दार्थ
<references/>