दम ग़नीमत है / नज़ीर अकबराबादी
देख, टुक ग़ाफिल चमन को गुल फ़िशानी<ref>फूल बरसाना</ref> फिर कहां?
यह बहारें, ऐश, यह शोरे जवानी फिर कहां?
साकीयो मुतरिब, शराबे अर्ग़वानी<ref>लाल रंग की</ref> फिर कहां?
ऐश कर खू़बां में, ऐ दिल शादमानी<ref>खुशी</ref> फिर कहां?
शादमानी गर हुई, तो ज़िन्दगानी फिर कहां?॥1॥
यह जो बांके गुल बदन मिलते हैं सौ-सौ घात से।
कुछ मजे़ कुछ लूट हिज़<ref>मजे़</ref> इन गुल रुख़ों की ज़ात से॥
एक दम हरगिज़ जुदा मत हो, तू इनके सात से।
जिस क़दर पीना हो पी ले, पानी इनके हात से॥
आबे जन्नत तो बहुत होगा, यह पानी फिर कहां?॥2॥
यह जो कड़वे होके हमको अब झिड़कते हैं यहां।
इनकी तल्ख़ी<ref>कड़ुवापन</ref> में हज़ारों है भरी शीरीनियां॥
उठ सकें जब तक उठा ऐ! दिल तू इनकी सख़्तियां।
लज़्ज़तें जन्नत के मेवे की बहुत होंगी वहां॥
पर यह मीठी गालियां खूवां<ref>सुन्दरियां</ref> की खानी फिर कहां?॥3॥
यह तो फिरते हैं सुनहरी सब्ज पोशाकें किए।
ख़ाक हो तो भी लगा रह इनके तू दामान से॥
इनकी पोशाकों की रंगत को ग़नीमत जान ले।
वां तो हुल्ले<ref>वह कपड़े जो स्वर्ग में दिये जाते हैं</ref> हैं बले! यह जोड़े रंगारंग के॥
सोसनी, सोहनी, गुलाबी, जाफ़रानी फिर कहां॥4॥
रह वहीं ऐ दिल सदा महबूब रहते हैं जहां।
कर ले उनकी खि़दमतें हर दम दिलो जां से मियां॥
जो तुझे देवें सो ले ले और ग़नीमत इसको जां।
वां तो हां हूरों के गहने के बहुत होंगे निशां॥
इन परी ज़ादों के छल्लों की निशानी फिर कहां?॥5॥
मुंह जो दिखलाते हैं खूवां दम बदम अब तोड़ जोड़।
देख ग़ाफ़िल उनके तू जोरो जफ़ा से मुंह न मोड़॥
जिस घड़ी आकर फ़ना अपनी दिखावेगी मड़ोड़।
फिर तो इक दम में चला जावेगा तू इन सबको छोड़॥
यह हटीले दिलरुबा महबूब जानी फिर कहां॥6॥
हुस्ने खू़वां की जहां कुछ हो रही हो दास्तां।
कान रखकर सुन उसे और याद रख हरदम मियां॥
उनकी एक-एक बात का सुनना तुझे लाज़िम है जां।
वां तो किस्से हूरो गुल्मां के बहुत होंगे बयां॥
इनकी पुर जुल्फ़ो कमर की यह कहानी फिर कहां॥7॥
हो सके जिस तौर सुन ले दोस्तों की वारदात।
और बयां कर आगे उनके हों जो तुझ पर मुश्किलात॥
जिस घड़ी आई कज़ा कोई न फिर पूछेगा बात।
उल्फ़तों महरो मुहब्बत सब हैं जीते जी के सात॥
मेहरबां ही उठ गये यह मेहरबानी फिर कहां?॥8॥
अब जो आग़ाजे़ जवानी की बहारें हैं मियां।
ऐशो इश्रत में उड़ा ले ज़िदगी की खू़बियां॥
पी नशे, धूमें मचा, कर सैर बाग़ो बोस्तां।
वाजज़ो नासह<ref>नसीहत करने वाले</ref> बकें तो उनके कहने को न मान॥
दम ग़नीमत है मियां, यह नौजवानी फिर कहां?॥9॥
होके हर दम खूबरूओं की मुहब्बत में असीर।
खा निगाहे सुर्मा साकी नाविकों के दिल में तीर॥
वस्फ़<ref>तारीफ़</ref> अब इनका जो करना है सो कर ले दिल पज़ीर।
जा पड़े चुप होके जब शहरे ख़मोशां में ‘नज़ीर’॥
यह ग़जल यह रेख़्ता, यह शेरख़्वानी फिर कहां?॥10॥