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आटे-दाल का भाव-2 / नज़ीर अकबराबादी

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आटे के वास्ते है हविस मुल्को माल की।
आटा जो पालकी है तो है दाल नालकी<ref>इधर-उधर से खुली छाजनदार पालकी</ref>।
आटे ही दाल से है, दुरुस्ती यह हाल की।
इससे ही सबकी खू़बी, जो है हालो काल<ref>कार्य और कथन</ref> की।
सब छोड़ो बात, तूतियो<ref>मैना</ref> पिदड़ीयो लाल की।
यारो कुछ अपनी फ़िक्र करो, आटे दाल की॥1॥

इस आटे दाल ही का जो आलम में है ज़हूर।
इससे ही मुंह पे नूर है और पेट को सुरूर<ref>आनन्द, हल्का नशा</ref>।
इससे ही आके चढ़ता है चेहरे पे सबके नूर।
शाहो गदा, अमीर, इसी के हैं सब म़जूर॥
सब छोड़ो बात, तूतियो पिदड़ीयो लाल की।
यारो कुछ अपनी फ़िक्र करो, आटे दाल की॥2॥

कु़मरी<ref>सफेद पक्षी</ref> ने क्या हुआ जो कहा ‘हक़सर्रहू’।
और फ़ाख़्ता भी बैठ के कहती है क़हक़हू॥
वह खेल खेलो जिससे हो तुम जग में सुर्ख़रू<ref>सम्मानित</ref>।
सुनते हो ऐ अज़ीज़ो इसी से है आबरू॥
सब छोड़ो बात, तूतियो पिदड़ीयो लाल की।
यारो कुछ अपनी फ़िक्र करो, आटे दाल की॥3॥

मैना के पालने की, अगर दिल में मैल है।
सच पूछिये, तो यह भी ख़राबी की ज़ैल है॥
सब इश्क़बाजी, रोज़ी के होती तुफ़ैल है॥
रोज़ी न हो तो मैना भी फिर क्या चुड़ैल है॥
सब छोड़ो बात, तूतियो पिदड़ीयो लाल की।
यारो कुछ अपनी फ़िक्र करो, आटे दाल की॥4॥

आटा है जिसका नाम, वही ख़ास नूर है।
और दाल भी परी है, कोई या कि हूर है॥
इसका भी खेल खेलना सबको ज़रूर है।
समझे जो इस सखु़न को, वह साहिबे शऊर है॥
सब छोड़ो बात, तूतियो पिदड़ीयो लाल की।
यारो कुछ अपनी फ़िक्र करो, आटे दाल की॥5॥

बुलबुल के पालने में, कहो क्या है फ़ायदा?
और जो बया भी पाला, तो फिर हाथ क्या लगा?
कोई दम में पेट मांगेगा, कुछ मुझको ला खिला।
फिर दाल और आटा ही काम आता है विला<ref>दोस्त</ref>॥
सब छोड़ो बात, तूतियो पिदड़ीयो लाल की।
यारो कुछ अपनी फ़िक्र करो, आटे दाल की॥6॥

जिन पर हैं चार पैसे वही हैं यहाँ अमीर।
और जितने पैसेवर हैं यह क्या खु़र्द क्या कबीर॥
और जिनके पास कुछ नहीं वह हैं निरे फ़क़ीर।
रोटी का सिलसिला है बड़ा क्या कहूँ ‘नज़ीर’॥
सब छोड़ो बात, तूतियो पिदड़ीयो लाल की।
यारो कुछ अपनी फ़िक्र करो, आटे दाल की॥7॥

शब्दार्थ
<references/>