भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जवानी / नज़ीर अकबराबादी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:03, 19 जनवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नज़ीर अकबराबादी |संग्रह=नज़ीर ग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बना है अपने आलम में वह कुछ आलम जवानी का।
कि उम्रे खिज्र से बेहतर है एक एक दम जवानी का॥

नहीं बूढ़ों की दाढ़ी पर मियां यह रंग बिस्मे का।
किया है उनके एक एक बाल ने मातम जवानी का॥

यह बूढ़े गो कि अपने मुंह से शेख़ी में नहीं कहते।
भरा है आह पर इन सबके दिल में ग़म जवानी का॥

यह पीराने जहां इस वास्ते रोते हैं अब हर दम।
कि क्या-क्या इनका हंगामा हुआ बरहम<ref>अस्त-व्यस्त</ref> जवानी का॥

किसी की पीठ कुबड़ी को भला ख़ातिर में क्या लावे।
अकड़ में नौ जवानों के जो मारे दम जवानी का॥

शराबो गुलबदन साक़ी मजे़ ऐशोतरब<ref>आनन्द, हर्ष उल्लास</ref> हर दम।
बहारे जिन्दगी कहिये तो है मौसम जवानी का॥

”नज़ीर“ अब हम उड़ाते हैं मजे़ क्या-क्या अहा! हा! हा
बनाया है अजब अल्लाह ने आलम जवानी का॥

शब्दार्थ
<references/>