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शब-बरात-2 / नज़ीर अकबराबादी

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आलम के बीच जिस घड़ी आती है शबबरात।
क्या-क्या जहूरे<ref>प्रकट करना</ref> नूर<ref>प्रकाश</ref> दिखाती है शब-बरात॥
देखे हैं बन्दिगी<ref>पूजा, इबादत</ref> में जिसे जागता तो फिर।
फूली नहीं बदन में समाती है शब-बरात॥
रोशन हैं दिल जिन्होंके इबादत के नूर से।
उनको तमाम रात जगाती है शब-बरात॥

बख़्शिश<ref>खैरात</ref> खु़दा की राह में करते हैं जो मुहिब<ref>प्रेमी</ref>।
बरकत<ref>कल्याण</ref> हमेशा उनकी बढ़ाती है शब-बरात॥

ख़ालिक<ref>ईश्वर</ref> क बन्दिगी करो और नेकयों के दम।
यह बात हर किसी को सुनाती है शब-बरात॥

ग़ाफिल<ref>बेखबर</ref> न बन्दिगी से हो और खै़र से ज़रा।
हर लहज़ा<ref>हर समय</ref> यह सभों को जताती है शब-बरात॥

हुस्ने अमल<ref>शुभ कार्य</ref> करके जो भला आक़िबत<ref>यमलोक</ref> में हो।
सबको यह नेक राह बताती है शब-बरात॥

लेकर हमीर हमज़ा के हर बार नाम को।
ख़ल्क़त<ref>संसार</ref> को उनकी याद दिलाती है शब-बरात॥
क्या क्या मैं इस शब-बरात की खूबी कहूं ”नज़ीर“।
लाखों तरह की खू़बियां लाती हैं शब-बरात॥

शब्दार्थ
<references/>