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बसन्त-10 / नज़ीर अकबराबादी

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आने को आज घूम इधर है बसंत की।
कुछ तुमको मेरी जान खबर है बसंत की॥
होते हैं जिससे ज़र्द ज़मीं ओ ज़मां तमाम।
लचके है ज़र्द जामा में खूबां की जो कमर।
उसकी कमर नहीं यह कमर है बसंत की॥
जोड़ा बसंती तुमको सुहाता नहीं ज़रा।
मेरी नज़र में है वह नज़र है बसंत की॥
आता है यार तेरा वह होके बसंत रू।
तुझको भी कुछ ”नज़ीर“ खबर है बसंत की॥

शब्दार्थ
<references/>