भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नारंगी / नज़ीर अकबराबादी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:32, 19 जनवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नज़ीर अकबराबादी |संग्रह=नज़ीर ग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अब तो हर बाग़ में आई है भली नारंगी।
है हर एक पेड़ की मिसरी की डली नारंगी।
हुस्न वालों के भी सीने की फली नारंगी।
देख कर उसकी वह अंगिया की पली नारंगी।
हमने तो आज यह जाना कि चली नारंगी॥
ऐ बी! मुकरती क्यों हो वह खंदी तो जीती है।
है जिसके हाथ हमने भिजाई जलेबियां॥
मैं दो बरस से भेजता रहता हूँ रात दिन।
तुमने अभी से मेरी भुलाई जलेबियां॥
यह बात सुनके हंस दी और यह कहा मियां।
ऐसी ही हमने कितनी उड़ाई जलेबियां॥
हलवाई तो बनाते हैं मैदे की ऐ ”नज़ीर“।
हमने यह एक सुखु़न की बनाई जलेबियां॥
शब्दार्थ
<references/>