भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शौके दीद / नज़ीर अकबराबादी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:58, 19 जनवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नज़ीर अकबराबादी |संग्रह=नज़ीर ग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिखला के झमक जिसको टुक चाह लगा दीजे।
फिर उसको बहुत, ऐ जाँ बाला न बता दीजे॥
सौ नाज़ अगर कीजे उफ़त भी जता दीजे॥
मंजर के ज़रा दर को आगे से हटा दीजे॥
फिर एक नज़र अपने मुखड़े को दिखा दीजे॥

देखी है तुम्हारे जो चेहरे की झमक ऐ जां।
दिल सीने में तड़पे है जो देख ले फिर एक आँ॥
है हमको बहुत मुश्किल और तुमको बहुत आसाँ।
है अर्ज़ यही अब, तो, ऐ बादशाहे खू़बाँ;॥
फिर एक नज़र अपने मुखड़े को दिखा दीजे॥

छुपते हो अयाँ होकर, हो तुम अगर इस ढब के।
आशिक़ भी तो सैदा हैं, चाहत ही के मतलब के॥
दीदार की ख़्वाहिश में हम यां हैं खड़े कब के।
जिस ढब से दिखाया था वैसी ही तरह अब के॥
फिर एक नज़र अपने मुखड़े को दिखा दीजे॥

आंखें भी तरसती हैं और दिल भी बहुत हैराँ।
कल पड़ती नहीं एक दम बिन देखे हुए ऐ जाँ!।
गर हुस्न दिखा हमको बेताब किया है यां॥
तो मेहर से टुक हँस कर, ऐ रश्क महे ताबाँ॥
फिर एक नज़र अपने मुखड़े को दिखा दीजे॥

आई है नज़र हमको जब से यह तरहदारी।
ठहरी है उसी दिन से ख़ातिर में तलबगारी॥
टुक लेते तुम्हें हम तो जो होती न नाचारी।
गर हमको जिलाना है तो करके नमूदारी॥
फिर एक नज़र अपने मुखड़े को दिखा दीजे॥

छुपने की अगर तुमने यां आन सँवारी है।
तो बस नहीं कुछ अपना, मर्ज़ी ये तुम्हारी है॥
बिन देखे हुए हमको हर साँस कटारी है।
कुछ और नहीं ख्वाहिश ये अर्ज़ हमारी है॥
फिर एक नज़र अपने मुखड़े को दिखा दीजे॥

दिल बहरे मुहब्बत में हर आन जो बहता है।
एक आन तुम्हें देखें अरमान ये रहता है॥
जी हो के बहुत बेबस दुःख दूरी के सहता है।
बेकल हो ”नज़ीर“ अब तो ऐं जाँ यही कहता है॥
फिर एक नज़र अपने मुखड़े को दिखा दीजे॥

शब्दार्थ
<references/>