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मंगलाचरण - 4 / प्रेमघन

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हेरत दोउन को दोऊ औचकहीं मिले आनि कै कुंज मझारी।
हेरतहीं हरिगे हरि राधिका के हिय दोउन ओर निहारी॥
दौरि मिले हिय मेलि दोऊ मुख चूमत ह्वै घनप्रेम सुखारी।
पूरन दोउन की अभिलाख भई पुरबैं अभिलाख हमारी॥