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लाल लली तन हेरि कै / प्रेमघन

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लाल लली तन हेरि कै महा प्रमोदित होत।
करि चकोर चख लखत मुख मंगल चंद उदोत॥
मंगल चन्द उदोत राहु सम केश रहे सजि।
मृग सम जुग द्रिग देखि दुःख काको न जात भजि॥
बद्री नारायन प्रमुदित ह्वै वारयो तन मन।
भाज्यो मन्मथ लाजि विलोकत लाल लली तन॥