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प्रार्थना - 10 / प्रेमघन

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लहलही होय हरियारी हरियारी तैसें,
तीनो ताप ताप को संताप करस्यो करै।
नाचै मन मोर मोर मुदित समान जासों,
विषय विकार को जवास झरस्यो करै॥
प्रेमघन प्रेम सों हमारे हिय अम्बर मैं,
राधा दामिनी के संग सोभा सरस्यो करै।
घनस्याम संग घनस्याम निसिवासर,
सदा सो निज दया बारि बुन्द बरस्यो करै॥