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वह तो चली गई / निदा नवाज़

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आह
वह रूठ के कहाँ चली गई
चुपके से कहां चली गई
उसका जि़ाक्र अब
केवल एक सुंदर स्वप्न लगता है
उसकी स्मृति अब
एक मनोहर अतीत बन गया है
जब से पुर्खों से उसका नाम सुना
तब से अक्सर सोचता हूँ
कैसी रही होगी
मोहिनी सी सूरत
पवन सी कोमल
पानी सी निर्मल
पर हाय वह तो चली गई
शरमाई होगी
भूखों के खली पेट देखकर
निर्धनों के नंगे शरीर देखकर
न्याय के हाथ में कशकोल देखकर
डर और गबरा गई होगी
विष बुझे बाणों को देखकर
बेचैन हो गई होगी
फिलस्तीन के बच्चों की
चीत्कार सुनकर
श्वेत अफ्रीकियों के
अत्याचार देखकर
उकता गई होगी
लोहे की मशीनों को देखकर
रोबोट को देखकर
सहम गई होगी
लगता है सदैव के लिए
चली गई
केवल अपना नाम छोडकर
चार अक्षरों का
एक खोखला शब्द
जिसे कहते हैं
मानवता।