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जिससे प्यार हो / निदा नवाज़

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“जिससे प्यार हो
उसके साथ निकल जाना चाहिये ”*
सूर्योदय से पहले
बंकर-बस्ती से दूर
बहुत दूर
और पार करना कहिए
भावनाओं के दरिया पर बनाया गया
विश्वास का वह पुल
जिसको धर्म की दहलीज़ पर बैठे
देवतओं ने गिराये जाने का
दंड दिया हो


जिससे प्यार हो
“उसे हमेशा पुकारना चाहिये
एक छोटे से नाम से”*
और उसके साथ रचनी चाहिये
एक सांझी कविता
अपने हाथों की रेखाओं को
देकर शब्दों का आकार
और खोजने चाहिये
आकाश पर
अपने भाग्य के तारे
अपनी इच्छा के ग्रह-पथ पर
डालने के लिए


जिससे प्यार हो
उसे पूजना चाहिए
दुर्गापूजा के दिन
वरदान में माँगना चाहिए
आँखों का एक पूरा आकाश
और समेटना चाहिए
अपने दामन में
एक-एक दमकता तारा
प्यार का


जिससे प्यार हो
उसके बालों में टांक देना चाहिए
वसंत में खिलने वाला
पहला फूल
और उसको मुनाना चाहिए
साँझ समय
पूर्णिमा की रात
शरीर की दहकती आग में उपजा
चनचल विचार


जिससे प्यार हो
उसके साथ ख़रीदनी चाहिए
एक नेया
और एक महासागर
और निकलना चाहिए ढूँढने
डूबे हुए सत्य की लाश
किसी बर्फानी तोदे के सीने में


जिससे प्यार हो
उसके साथ नाचना चाहिए
नंगे पांव
अमावस की रात
किसी दूर द्वीप में
तलवों के रक्तरंजित हिने तक
और देना चाहिए उसे उपहार
होंठों पर झिलमिलाता, रस भरा
एक सलोना, नमकीन चाँद।

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