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अग्नि कुण्ड / निदा नवाज़

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मेरा संसार
एक अग्नि कुण्ड है
और मैं
एक उधेड़बुन में उलझा हूँ
अपनी इच्छाओं की
अपनी भावनाओं की
आहुति दे रहा हूँ
इस अग्नि कुण्ड में
जन्म-जन्म से
उठ रहा है धुआँ
मेरी इच्छाओं का
भावनाओं का
इस धुएं ने मेरी चारों ओर
एक जाल बुना है
जिसमें मैं उलझ गया हूँ
और केवल एक शून्य बनकर
रह गया हूँ.
एक शून्य
जो स्वयं कुछ नहीं होता
किन्तु
दूसरों के हाथ लगकर
दूसरों को लाभ पहुंचाता है
दूसरों को खुश रखता है
और अपने लिए बुनता है
एक शाश्वत
एक शून्य
अर्थहीन.