भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सर्वव्यापी / निदा नवाज़

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:38, 12 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निदा नवाज़ |अनुवादक= |संग्रह=अक्ष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर एक जगह तुम ही तुम हो
जिधर भी देखूं
जहां भी देखूं
तेरे ही दर्शन मैं पाऊं
पत्तों में हरियाली बनकर
फूलों में कोमलता बनकर
पानी में निर्मलता बनकर
धूप में किरणों की धारा तुम
बदली में तुम वर्षा बनकर
जिधर भी देखूं
जहां भी देखूं
तेरे ही दर्शन मैं पाऊं।