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सर्वव्यापी / निदा नवाज़
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हर एक जगह तुम ही तुम हो
जिधर भी देखूं
जहां भी देखूं
तेरे ही दर्शन मैं पाऊं
पत्तों में हरियाली बनकर
फूलों में कोमलता बनकर
पानी में निर्मलता बनकर
धूप में किरणों की धारा तुम
बदली में तुम वर्षा बनकर
जिधर भी देखूं
जहां भी देखूं
तेरे ही दर्शन मैं पाऊं।