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काँटों का उपहार / निदा नवाज़
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धन्यवाद तुम्हारा
क्षमा कर दो मुझे
मैं आया था कि
अतीत की कड़वी स्मृतियां
जो तुमने मुझ को
पिला दी थीं विष की तरह
लौटा दूँ
कह दूँ इन्हें सुरक्षित रख लो
अपने लिए
कि कड़वाहट लगती है
सुन्दर और प्यारी
मधुरता की मित्रता में ही
प्रतीक्षा
मिल्न की आशा पर की जाती है
पर समक्ष मेरे बिछे हैं
केवल प्रतीक्षा के कांटें
और उम्मीद का कोई नाम नहीं
यह जानकर भी
कहो मैं कैसे आगे बड़ों
तुम्हें वापस लौटा लूँ
तो अछा है
तुम्हारा यह
काँटों का उपहार।