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आँख भर सागर / निदा नवाज़

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नींद की गोलियां खाकर
आज भी सोते हें वे लोग
रात की फटी पुरानी चादर ओढ़े
बिखरे सपनों को तलाशते
जहां उनके हाथ आता हे
बिन चाँद तारों का
अंजुरी भर आकाश
और एक सूना-सा
आँख भर सागर
जब वे उतरते हें
दिन के आग उगलते अमाव में
जल जाता हे
उनका आकाश
और सुख जाती हे हर बूंद
उनके सागर की
न ही संभाल सकती हे उन्हें
रात की फटी पुरानी चादर
और न ही
दिन का दहकता अलाव.