भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँख भर सागर / निदा नवाज़

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:55, 12 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निदा नवाज़ |अनुवादक= |संग्रह=बर्फ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नींद की गोलियां खाकर
आज भी सोते हें वे लोग
रात की फटी पुरानी चादर ओढ़े
बिखरे सपनों को तलाशते
जहां उनके हाथ आता हे
बिन चाँद तारों का
अंजुरी भर आकाश
और एक सूना-सा
आँख भर सागर
जब वे उतरते हें
दिन के आग उगलते अमाव में
जल जाता हे
उनका आकाश
और सुख जाती हे हर बूंद
उनके सागर की
न ही संभाल सकती हे उन्हें
रात की फटी पुरानी चादर
और न ही
दिन का दहकता अलाव.