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कितना अछा होता / निदा नवाज़

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कितना अच्छा होता
जो हमारे पास
आंसुओं की आग न होकर
जीवन का होता
एक हरा-भरा उपवन
जहां टहलते हिरन
और ख़रगोश
जहां न होती कोई हत्या
न अपहरण और बलात्कार की
कोई बात
जहां माथे पर लिखा धर्म
न बांटता जीवन और मौत
प्यार और नफ़रत
जहां प्यार की भाषा
सरगोशियाँ न होकर
होती एक पुकार
जहां न तलाशते हम
मन-द्वार पर
होने वाली दस्तक
सुनने के लिए
किसी कॉफ़ी हाउस का
अँधेरा कोना
और न अपने प्रियतम की
उंगलियाँ छूने के लिए
तराशना पड़ता
चाय का एक छोटा सा बहाना
कितना अच्छा होता.