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दीपावली / निदा नवाज़

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(उस महान व्यक्ति के नाम जिसने संसार में पहली मशाल जलाई)

बहुत दूर से आया था वह
ब्रम्हांड की ना जाने कितनी
परतें चीर कर
जेव तत्वों के
घनेरे जंगल के
बीचूं बीच में से
अपने लिये रास्ता निकालता
कोशिकाओं के
विशाल सागर में तैरता
अँधेरे रास्तों को फलांगता
प्रगैतिहासिक गुफाओं में
सोचता, सोता
और संभोग करता
बच्चे जनता
उसकी नज़रों के पक्षी
जहाँ तक उड़ान भरते थे
वहां तक वह
अपना अधिकार समझता था
वह भोला भाला था
अपने विचारों में
और अपने स्वभाव में
धीरे धीरे उसके मन में
जिज्ञासा का भ्रूण
पनपने लगा
उसके मस्तिष्क की
पगडंडियों पर
चाहतों के हिरण
कुलांचे भरने लगे
उसके दिल में
सच्चाई की क्षितिज तक
पहुंचने की
इच्छाओं की अप्सराएं
अंगडाईयां लेने लगीं
सूर्य, चाँद और तारे
उसकी आँखों में
सपने भरने लगे
उसकी रक्तग्रन्थियों में
पहले से मौजूद
अंधेरों को मिटने की
प्रवृत्ति के मयूर
अपने पंख फैलाने लगे
और एक दिन
उसने ढूँढ ही ली
पत्थरों के सीने में चुप्पी
एक अल्हड़ चिंगारी
और उसने जलाई
संसार की पहली मशाल
अँधेरे के विरोध में
दर्ज हुआ
मानव का पहला विद्रोह
वह जितनी ज्यादा मशालें
जलाता गया
उतने ही ज्यादा रास्ते खुलते गये
पर पुराने बीहड़ से
अंधेरों के कंकाल
रह रह कर
विध्वंस का नृत्य करने लगे
मशालों की रौशनी
जैसे जैसे बढती गई
वैसे वैसे यह नृत्य
प्रचंडकारी होने लगा
पल भर को महसूस हुआ
जैसे आतंक के अँधेरे
सोहार्द की रौशनी को
बुझा ही देंगे
पर देखते ही देखते
अँधेरे के भयानक बीहड़ से
आये कंकाल
रौशनी में घुले
तर्क के ताप से
पिघलने लगे
अँधेरा छट गया
रौशनी चरों ओर फैल गई
शांति के दीप जल उठे
और हर दिशा
दीपावली का प्रकाश
बिखर गया
दूर क्षितिज के उस पार से
आवाज आई
"असतो मा सद्गमय
तमसो मा ज्योतिगर्मय:”