भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वेलेंटाईन-डे और कर्फ़्यू / निदा नवाज़

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:54, 12 फ़रवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निदा नवाज़ |अनुवादक= |संग्रह=बर्फ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज वेलेनटाईन-डे के अवसर पर
भावनाओं में महकती है
भीनी भीनी ख़ुशबू
जिस्म-व-जान में दोड़ती है
एक मदहोश लहर
आत्मा के झरोखों से आने लगती है
स्वर्ग की सुगन्धित पवन
इस दिन की प्रतीक्षा थी पूरे वर्ष
कि मिलन का अवसर मिल जाए
किसी रेस्टुरां के काफ़ी टेबल पर
खोल देते हम एक दूजे के प्रेम-ग्रंथ
और इन रोचक क्षणों के बीच
होले से मैं निकालता
एक अधखिला लाल गुलाब
सोंपता तुम्हारे चन्दन हाथों में
और प्रेम प्रतिज्ञा के तौर
दोहराता मैं एक बार फिर
प्रेम वचन
“मेरी जान मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ”
और तुम भी मेरी धड़कनों के साज़ पर
सरगोशियों में गुनगुनाती एक और बार
“मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूँ जानम”
मेरे पूरे व्यक्तित्य में बज उठते
वफ़ा के तार
मैं नज़रों के हात्थों टाँकता
तुम्हारे बालों में प्यार के पुष्प
तुम्हारी बोजल पलकों के नीले आकाशों पर
उड़ान भरते
मेरी दृश्य के परिन्दे
म्मलिकत-ए-मुहब्बत की अप्सराएं
हम पर बरसाती रंग रंग के फूल
हम पर प्रकट होजातीं
प्यार की लज़तें
लेकिन मेरी जान
आज सातवें दिन भी करफ्यू जारी है
सारे शहर पर दहशत तारी है
सडकें वीरान हैं
और परिन्दे तक भी
टीयर-गेस शालिंग से सहमे हुए हैं
फ़ोन, इंटरनेट और केबल नेटवर्क
बंद हैं
मगर मेरी जान
मैं अपनी मस्जिद-ए-दिल में
तुम्हारी काल्पनिक प्रतिमां के समक्ष
अपने माथे पर सजाये
लाल गुलाबों का एक उपवन
सलाम करता हूँ तुम्हें
कि कुछ तो प्रेम-दिवस का भरम रह जाए
कुछ तो पिन्दार-ए-मुहब्बत का भरम रह जाए.

(14-02-2013-श्रीनगर-कश्मीर)