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छोड़ कै खाट खड़या होग्या / मेहर सिंह
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बांच कै गोरमैन्ट का तार झड़गी चेहरे की लाली
छोड़ कै खाट खड़या होग्या।टेक
ईब तै जाणा था कई दिन मैं
न्यूं वो फिकर करण लग्या तन मैं
मन मैं सौ सौ करै विचार, उड़दी गात मैं डाली
ला कै डाट खड़या हो ग्या।
मनै चलते नै बिस्तर धारे
जुड़गे अगड़ पड़ौसी सारे
मित्र प्यारे खड़या परिवार मां दामण आली
कालजा पाट खड़या हो ग्या।
सब बातों का छुटग्या भरम
करड़ा हिरदा हो ग्या नरम
होग्या देश धर्म मैं प्यार सुरती उस हर मैं लाली
मेहर सिंह जाट ख्ड़या होग्या।