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डर रहा हूँ / विमल राजस्थानी

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डर रहा हूँ आँसुओं की इस उफनती भीड़ में मृदु-
वेदना की गीत जननी व्यंजना ही खो न जाये

गीत जो मेरे अधर पर धर दिये तुमने सजा कर
भाव गीतों के भरे मन में ठुमुक पायल बजा कर
सृष्टि का संताप सारा जो हृदय में हैं समेटे
वेदना की मूर्छना के वे सरल सुकुमार बेटे

भय मुझे है कौन फिर मेरी व्यथा पर कान देगा
सिसकियों के शोर से बहरे कहीं वे हो न जायें

प्रेम का इतिहास लपटों से लिपट कर रो रहा है
लाश अपनी ही स्वयम् विश्वास काँधे ढो रहा है
शब्द-कोशों में प्रणय के अर्थ सार छù-वेशी
प्रीति-शव विरहांक में लेटा युगों से मुक्त-केशी

दिल धड़कता है-प्रणय के शेष स्मृति दंश दाहक
काल की जलती चिता के अंक में थक सो न जायें

-19.1.1976