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नयनों के तीर बरसते हैं / विमल राजस्थानी
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इस रंग-बिरंगी दुनिया में जीना मुश्किल, मरना मुश्किल
काँटे ही काँटे हैं जग में, पग-पग पर पग धरना मुश्किल
मदिरालय के दरवाजों पर प्यासे भौंरों का जमघट है
जो खुशनसीब भीतर पहुँचे दो घूँट उन्हें भरना मुश्किल
है प्यार-प्रीति ही परमेश्वर-सारे मजहब चिल्लाते हैं
पर सच तो यह है भूले से भी प्यार यहाँ करना मुश्किल
आदर्शों की चट्ठानों के बाँधे जाते तट-बंध यहाँ
फिर छिछले-छिछले पानी में दिलवालों का तिरना मुश्किल
पिंजरों से पंछी भागें तो नियमों के तीर बरसते हैं
छलनी हो जाती है काया, उड़ना मुश्किल, गिरना मुश्किल
दर्दों से राहत पाने की सोचें तो जग बनता आँधी
‘बन नीर भरी दुख की बदली’ प्रिय-शशि मुख पर घिरना मुश्किल
-14 अगस्त, 1976