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पावस - 15 / प्रेमघन

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बनी बर्षा की बहार बिलोकिबै,
काज अटान चढ़ी वह बाल।
दबी दुति दामिनि देखत दीपति,
सुन्दर देंह लजाय कमाल॥
उदय घन प्रेम करै मुख मंडल,
सोहत सूहे दुकूल रसाल।
लखौ जनु घेरि लियो चहुँ ओर सों,
चन्द अमन्दहि नीरद लाल॥