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जन्म खण्ड / गेना / अमरेन्द्र

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जों बसन्त मेँ गाछी के ठारी सेँ निकलै टूसा
चतुरदशी के बाद सरँग मेँ विहँसै चान समूचा
बितला शैशव पर जों आबै मारलेॅ जोर जुआनी
जेठोॅ के सुखलोॅ चानन मेँ जों भादोॅ के पानी

जिना जुआनी के ऐला पर आबै लाज-शरम छै
लाज-उमिर के ऐथैं युवतीं पाबै पिया परम छै
पिया परम के पैथें जेना सुध-बुध खोय छै नारी
ढोतेॅ बनै नै केन्हौँ ओकरा सुख के बोझोॅ भारी

जेना सौनोॅ मेँ पछिया के उठथैं चलै झकासोॅ
बेली के खिलथैं गंधोॅ रोॅ ठाँव-ठाँव पर बासोॅ
जों समाधि के लगथैं अजगुत सुख केॅ पाबै तपसी
तपला धरती के बादोॅ मेँ जेना आबै झकसी
आय वहेॅ रँ कादर-पट्टी झूमै झन-झन बाजै
डलिया-सुपती-मौनी-थरिया किसिम-किसिम के साजै
बरस-बरस के बितला पर लपकी बनलोॅ छै माय
सौंसे पट्टी रोॅ मौगी सब गेलोॅ छै उधियाय

करका, कच्चा माँटी रोॅ बुतरू रँ बुतरू भेलै
भोज-पात के नेतोॅ-पानी द्वारे-द्वार बिल्हैलै
गोबर केॅ पानी मेँ घोरी द्वार-भीत पर लीपै
कोय ऐंगन के मिट्टी के धुरमुस सेँ लै केॅ पीटै

छपरी के छौनी होलीॅ छै नया डमोलोॅ लै केॅ
लपकी रोॅ मरदाना खुश छै बाप पूत रोॅ भै केॅ
करिया-करिया छौड़ी-छौड़ा कादर रोॅ हुलसै छै
देखी केॅ लपकी रोॅ मरदाना के दुख झुलसै छै

गीत-नाद के कंठोॅ पर की टन-टन टीन टनक्का
काँसा के थरिया पर बाजै झन-झन-झनक झनक्का
बहुत दिनोॅ के बाद कदरसी अजगुत करै छै खेल
टोला भर रोॅ मौगी के माथा पर देखलौं तेल

देखी-देखी गोद रोॅ बच्चा लपकी हेनोॅ विभोर
आशिष दै छै खनै-खनै मेँ; इस्थिर रहै नै ठोर
मूँ केॅ चूमै, गाल केॅ चूमे, माथा चूमै लपकी
सुतलोॅ ममता हिरदय के हेनोॅ उठलोॅ छै भभकी

देखै तेॅ देखै मेँ पिपनी सुय्यो भरी हिलै नै
देर-देर तांय पोॅल बेचारा अलगे रहै, मिलै नै
छूवै छै गुदगुदोॅ तरत्थी, दह-तलवा केॅ छूवै
बुतरू बदला मय्ये केॅ गुदगुदी बदन मेँ हूवै

आरो कभी झुकी केॅ अपनोॅ सीना मेँ लै-लै छै
पोखरी पर जों सांझ झुकी केॅ कमल हृदय मेँ राखै
जत्तेॅ कि लेरुआ देखी नै गय्यो कभी पन्हाय छै
दूध बही केॅ साड़ी केॅ सरगद्दो करलेॅ जाय छै

घर-घर पीछू लपकी रोॅ बस भाग सर्हैलोॅ गेलै
कारोॅ पत्थर के पुतला रँ गेना गोद मेँ खेलै
कत्तेॅ दिन ताँय गीत-नाद के भेलै धूम-तमाशा
लपकी रोॅ दरवाजा सब रोॅ बनले रहलै बासा
बहुत दिनोॅ ताँय बुतरू-उतरू चुनमुन शोर मचैलकै
कोय बोकटोॅ कोय कोबोँ भर लै धुरदा मिली उड़ैलकै
रात-रात भर लपकी रोॅ घर होतेॅ रल्है इंजोर
दीखै दम्पत्ति केॅ दुनियाँ एकदम हरा कचोर

बाप बनै छै घोड़ा, बैठी गेना टिकटिक बोलै
माय रोॅ गोड़ोॅ के झुलवा पर ऊपर-नीचेॅ झूलै
बढ़लोॅ गेलै माय-बाप रोॅ हँसी-खुशी संग गेना
बीस बरस रोॅ भेलै कहिया, केकरौ ज्ञात नै केना।