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वर्षा खण्ड / गेना / अमरेन्द्र

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पानी सेँ ढलमल मेघोॅ के सरँगोॅ मेँ बारात
सूरज देव बिलैलै हेनोॅ दिन्हो लगै छै रात
मेघ छिकै या कारोॅ-कारोॅ राकस करै छै खेल
बिजुरी नेँ ई, दाँत छिकै राकस के। मिलै छै मेल
करिया मेघोॅ रोॅ बीचोॅ मेँ बिजुरी लागै केहनोॅ
कोय सिलोटी पर टेढ़ोॅ रेखा खिचलेॅ छै जेहनोॅ
कभी झाकसोॅ कभी तेॅ बूंदा-बूंदी के अठखेल
देखलेॅ छेलियै हेनोॅ नै धरती-सरंगोॅ के मेल
बिजुरी केरोॅ मशाल जलैनें, ठनका-तुरही साथ
बूंदा-बूंदी-झाकसोॅ-अन्धड़-पानी के बारात
आय सरँग शिव हेनोॅ लागै-जटा बिखरलोॅ छै
फूले लाबा, आय धरती रोॅ खोचा भरलोॅ छै
बाप बनी केॅ सरँग करै छै पहलोॅ कन्यादान
नेहोॅ के लोरोॅ सेँ बेटी रोॅ भींजे छै प्राण
हू-हू हवा चलै छै केहनोॅ गाछ डोलैनेँ- झाड़नेँ
पछिया के झोंकोॅ सेँ लम्बा गाछ हिलै छै हेनोॅ
निसां चढ़ैनेँ आरी-बारी लोग झुमै छै जेहनोॅ
भाव उतरला पर जेना कि भगत चलै छै चाल
लम्बा गाछोॅ के होय रहलोॅ छै होने कुछ हाल
पछुवा हूकै, पुरबा हूकै, गाछी केरोॅ निनौन
आपनोॅ रीस उतारी रहलोॅ छै जेना कि सौन
कत्तेॅ देर बरसलै तभिये रुकलै जाय केॅ मेघ
पर धरती पर पानी के की कहीं मिलै छै थेग
सर-सर, छप-छप, होॅ- होॅ पानी के बहलोॅ छै धार
उचचुभ करै छै छोटका गाछ; तेॅ डुबलोॅ खेत-पतार
ठारी बीच नुकैलोॅ-भींजलोॅ झाड़ै डैना काक
फुदकी-फुदकी दीएॅ लागलै काँव-काँव के डाक
की बोलै छै? मेघ थमै के सबकेॅ कहै सनेश
आकि वियोगिन केॅ सुख दै छै, जेकरोॅ पिया विदेश
पाँख खुजाबै छै लोली सेँ ठहरी-ठहरी केॅ
पानी कभी उड़ाय छै ऊपर पंख पसारी केॅ
पत्ता पर पत्ता सेँ टप-टप बूंद चुवी रहलोॅ छै
रुकी-रुकी केॅ उतरै लेॅ जों कोय सिखी रहलोॅ छै
गाछ लगै छै, मली-मली केॅ जना नहैलेॅ हूवेॅ
बूंद; जना, पत्ता रोॅ लट्टोॅ सेँ ससरी केॅ चूवेॅ
बरसा थमी गेलोॅ छै लेकिन ठनका तेॅ ठनकै छै
बाहर जाय सेँ मोॅन डरै छै, दोनों गोड़ रुकै छै
गेना नेँ ओसरा पर सेँ ऐंगन के ओर देखलकै
आँख भरी ऐलै ओकरोॅ; हाथोॅ सेँ लोर पोछलकै
पोखर बनी गेलो छै ऐंगन, देहरी भँसी गेलोॅ छै
परछत्ती नीचेॅ छै टुटलोॅ, भीतो धँसी गेलोॅ छै
खोॅर बची रहलोॅ छेलै छपरी पर कहीं-कहीं पर
चूला सेँ पानी के फोका होय छै वहीं-वहीं पर
ऐंगना दोनों ओर देहरी लागै नदी रोॅ पाटोॅ
गेना तड़पी उठलै, खाय केॅ कोय जना कि साटोॅ
लोर चुवी केॅ गालोॅ तक आबी केॅ ठहरी गेलै
मिरतू सेँ झगड़ै मेँ जिनगी फेरू हारी गेलै
बाहर बरसा थमी गेलोॅ छै, ठनको रुकी गेलोॅ छै
माथो तेज हवा रोॅ धीरेॅ-धीरेॅ झुकी गेलोॅ छै
लेकिन गेना रोॅ आँखी सेँ झोॅड़ पड़ी रहलो छै
हिरदय मेँ दुक्खोॅ रोॅ झोंका तेज बही रहलोॅ छै
हुमडै़ छै फटलोॅ छाती-देखी केॅ भीत भसकलोॅ
बचलोॅ पुरबारी छपरी सेँ भी कुछ खोॅर खसकलोॅ
पट-पट केॅरेॅ लगलै कानै लेॅ दोनों ठो ठोर
टप-टप चूवेॅ लगलै आँखी सेँ गेना रोॅ लोर
आँख मुनी केॅ बैठी गेलै माथोॅ पर लै हाथ
गेना केॅ समझै मेँ नै आबै छै विधि रोॅ बात
”जे गरीब छै ओकरै पर कैहिनें ई जुलुम हुवै छै
जेकरोॅ आँख चुवै छै, ओकरे छपरी केना चुवै छै
”की बिगाड़लेॅ छै भगवानोॅ के गरीब नेँ हाय
रहै आपनोॅ जिनगी खाय केॅ, जिनगी एकरा खाय
”केकरा कहै छै सुक्खोॅ रोॅ दिन, की चैनोॅ रोॅ रात
हम्में तेॅ एक्के जानै छी बस दुक्खोॅ रोॅ बात
”दुक्खे साथी, दुक्खे बाबू, दुक्खे हमरोॅ माय
दुक्खे आगू-पीछू डोलै, दुक्खे एक सहाय
”जानेॅ कहिया देखबोॅ आँखी सेँ सुक्खोॅ रोॅ दिन
जिनगी हेने लागै, जे रँ गड़ी गेलोॅ छे पिन
”रात कटै छै परलय नाँखी, दिन भी जना कभात
एकदम गूरे नाँखी टहकै छै गरीब रोॅ जात“
”छटपट-छटपट केॅ रै हेनोॅ सुतला मेँ, जगला पर
जिन्दा झोंकी देलेॅ रेॅ हेॅ कोय जरलोॅ सारा पर
”लोग कहै छै जेकरोॅ कोय नै, ओकरोॅ छै भगवान
कहाँ नुकैलोॅ छै इखनी, कैहिनें नी दै छै ध्यान
”पंडा जी तेॅ बोलै छेलै-इन्दर जे गुस्सैलै
सौंसे वृन्दावन मेँ पानी सागर जकां समैलै
”अलबल केॅ रेॅ लागलै बच्चा, बूढ़ोॅ, जोॅर जनानी
गोबरधन लै लेलकै अँगुरी पर रोकै लेॅ पानी
”इखनी कैहिनें नी आबै; हम्मू तेॅ संकट मेँ छी
की भगतान बड़ोॅ केॅ ही चाहै छै बीछी-बीछी
”जों भगमान बड़ोॅ लेॅ छै तेॅ के गरीब रोॅ होतै
के पहाड़ रँ जिनगी केॅ ढोबै मेँ साथ निभैतै’
”कोय पूछै तेॅ कना सुनैबै-मन रोॅ विथा अपार
जिनगी एक गरीबोॅ लेली साहू केरोॅ उधार“
चिंता मेँ बरफोॅ रँ गेना केॅ मन गल्लोॅ जाय छै
हुन्नेॅ मेघोॅ के झुमार सरँगोॅ सेँ टल्लोॅ जाय छै
सूरज सेँ निकली-निकली केॅ बिखरै आबेॅ धूप
या सोना केॅ परसी रहलोॅ छै कोय लैकेॅ सूप
चमकी उठलै एक्के बारगी जे-जे जहाँ-जहाँ पर
आँख बेचारी देखै लेॅ रुकती तेॅ कहाँ-कहाँ पर
पानी पर धूपोॅ के पतला-पतला किरिन छै पड़लोॅ
की साड़ी पर सोना रोॅ ही तार सुनहरोॅ जड़लोॅ
पानी मेँ ढुकलोॅ बगुला दूरोॅ सेँ बहुत सुहाबै
उपलैलोॅ छै शंख नीचु सेँ सबकेॅ हेने बुझावै
रेशमी साड़ी रँ चिकनोॅ, देहोॅ सेँ हवा लगै छै
कोय पनिहारिन हौले सेँ टकराबेॅ, होने ठगै छै
गुदगुदाय देॅ सौंसे देह केॅ देह सेँ लगी लगी केॅ
लजवन्ती कनियैनी पहिलेॅ-पहिलेॅ जेना छुवी केॅ
उवड़ोॅ-खाबड़ोॅ बांधी सेँ पानी आबै छै चल्लोॅ
जों बनिहारिन रोॅ बच्चा खेतोॅ के बीच उछल्लोॅ
गूंजै छै पानी के सर-सर दूर-दूर ताँय हेनोॅ
दूर गाँव मेँ गीतारिन रोॅ गीत, बीहा मेँ जेहनोॅ
ढीबा, सुगिया, मंटू रोॅ बुतरू पानी मेँ उछलै
मैदानोॅ रोॅ पानी मेँ जानी-जानी केॅ फिसलै
गुदगुदाय वाला पुरबा रोॅ लगथैं कोमल हाथ
निकली ऐलै बूढ़ो सब बाहर बुतरू के साथ
हिन्नेॅ गेना ऐंगना-पानी केॅ हाथोॅ सेँ उपछै
भीत भसकला के कारण नाली के माटी खपछै
तरबर होय रैल्होॅ छै गेना रोॅ सौंसे देह-हाथ
उपछै मेँ भींजलोॅ छै या घामोॅ मेँ? अनबुझ बात
झुकलोॅ धौंनोॅ, कमर ऐंठतेॅ, सब देहोॅ रोॅ जोड़
कत्तेॅ देतियै साथ? गेना रोॅ दुक्खेॅ लागलै गोड़
थकथकाय केॅ बैठी रहलै होय केॅ बैठाँ चूर
‘बालम बिन बरखा नै भावै’ कोय गाबै छै दूर।