ठुनकै छै / कस्तूरी झा ‘कोकिल’
पत्नी ठुनकै छै आनै लेल साड़ी, साया, चोली।
बाग बगीचा कोयल कू-कू आबै छै होली।
आम गाछ में मंजर मह-मह,
लीची मंजर मतवाली।
रही-रही भौंरा मँडराबै,
संभव की रखवाली?
महुआ तर में जानी नाचै, गाबै मधुर रंगोली।
पत्नी ठुनकै छै आनै लेल साड़ी, साया, चोली।
बाग बगीचा कोयल कू-कू आबै छै होली।
पेंट-सर्ट माँगै छै बेटाँ,
बेटीं सलवार कुरती।
बहुत देर नैं करि हौ पापा!
चल्लोॅ आबोॅ फुरती।
कलकत्ता सें लेने अयहियौ रंग-अबीर केॅ झोली।
पत्नी ठुनकै छै आनै लेल साड़ी, साया, चोली।
बाग बगीचा कोयल कू-कू आबै छै होली।
मंदी सें छटनी होय गेलै,
करियै कोन उपाय?
सबके आशा मिट्टी मिलतै,
अब की करियै भाय?
लाज लगै करजा माँगे में व्यंग्य बाण ठिठोली।
पत्नी ठुनकै छै आनै लेल साड़ी, साया, चोली।
बाग बगीचा कोयल कू-कू आबै छै होली।
पूआ पूड़ी केनाँक छनतै?
ताकतै टुक-टुक बुतरू।
खाली पेट सुहैतै बोलॅ
दरबाजा पर घुँघरू?
कोन मुँह परदेशी जयतै, खुलतै मुँह सें बोली?
पत्नी ठुनकै छै आनै लेल साड़ी, साया, चोली।
बाग बगीचा कोयल कू-कू आबै छै होली।
-मुक्त कथन, वर्ष 34, अंक 29, 07 मार्च, 2009