भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्या तुम मुझ से बात करोगी / रति सक्सेना
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 19:47, 22 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रति सक्सेना }} क्या तुम मुझ से बात करोगी<br> पहले की तरह<br> ...)
क्या तुम मुझ से बात करोगी
पहले की तरह
अपनी कब्र पर रखे पत्थर को उतार कर
कंकाल पर माँस पहन कर
तुम मुझसे बात करोगी
पहले की तरह
उसने पूछा
" कैसे?"
मैंने कहा
"माँस की बात करते हो
हड्डियाँ गल कर
बन गई हैं बुरादा
जीभ झड़ गई
आवाज आसमान में उड़ गई
" बात तो करो
सब कुछ आ जाएगा
माँस, हड्डियाँ, जीभ
और तो और
आवाज"
मैंने दरख्त की जड़ से जीभ बनाई
पत्तियों से दाँत
घाटियों में घूमती आवाज को पकड़ा
सागरी लहरों से देह बनाई
लो . अब मैं तैयार हूँ,
बतियाने के लिए
अरे अब तुम कहाँ गए?