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कर्ज हैबानिअत उठावै है / नवीन सी. चतुर्वेदी
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कर्ज हैबानिअत उठावै है।
किस्त इन्सानियत चुकावै है॥
हम नें बस आसमान ही देखे।
जब कि कन-कन कों नींद आवै है॥
हम बचामें हैं लौ मुहब्बत की।
फिर यही लौ हमें जरावै है॥
एक पोखर समान है जीबन।
जा में किसमत कमल खिलावै है॥
दिल के टुकड़ा समेंट लेउ 'नवीन'।
तेज अँसुअन की ल्हैर आवै है॥