भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मण तरू पाँच इन्द्रि तसू साहा / कणहपा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:19, 6 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कणहपा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatAngikaRachna}} <...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मण तरू पाँच इन्द्रि तसू साहा।
आसा-बहल परत फल बाहा॥
वॉर गुरू वअणों कुठारे छिज्जअ।
कणह भणइ तरू पुणणइजअ॥
बढ़इ सो तरू सुभासुभपाणी।
छेवइ बिदुजन गुरूपरिमाणी॥
जो तरू छेवइ भेउ ण जाणइ।
सडि पड़िआँ मुठा ना भव माणइ॥
सुणणा तरूवर गऊण कुठार।
छेवई सो तरू मूल ण डाल॥

स्रोत:

  • "अंगिका भाषा और साहित्य" — बिहार राष्ट्रभाषा परिषद
  • "हिंदी काव्य धारा" — महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन