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हमरोॅ टुटलोॅ ई मड़ैया छेकै महल हमरोॅ / अमरेन्द्र

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हमरोॅ टुटलोॅ ई मड़ैया छेकै महल हमरोॅ
हमरोॅ आँखी केरोॅ ई लोर गंगाजल हमरोॅ
हम्में खानलेॅ छियै पोखर खटी-खटी केॅ ई
यही लेॅ बोलै छियै - छेकै ई कमल हमरोॅ
पूर्णिमा बाद जेना चाँद द्वितीया रॉे रहेॅ
घटी केॅ होने रही गेलै आबेॅ बल हमरोॅ
दोस्त तेॅ ढेर छै हर बात में हाँमी दै लेॅ
सुक्खोॅ दुक्खोॅ रोॅ मतर साथी ही असल हमरोॅ
आदमी माँटी छेकै आकि ई सरंग छेकै
होवेॅ पारेॅ नै कभी-प्रश्नो ई सहल हमरोॅ
आय समुन्दर में छै तूफानो तेॅ आबैवाला
पार उतरै के भी संकल्प छै अटल हमरोॅ
आय जों साथ छियौं तोरोॅ रहनुमा बनी केॅ
हम्में नै होभौं, मतर होतौं - ई गजल हमरोॅ

-12.6.91