भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमरोॅ टुटलोॅ ई मड़ैया छेकै महल हमरोॅ / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:39, 6 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=रेत र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमरोॅ टुटलोॅ ई मड़ैया छेकै महल हमरोॅ
हमरोॅ आँखी केरोॅ ई लोर गंगाजल हमरोॅ
हम्में खानलेॅ छियै पोखर खटी-खटी केॅ ई
यही लेॅ बोलै छियै - छेकै ई कमल हमरोॅ
पूर्णिमा बाद जेना चाँद द्वितीया रॉे रहेॅ
घटी केॅ होने रही गेलै आबेॅ बल हमरोॅ
दोस्त तेॅ ढेर छै हर बात में हाँमी दै लेॅ
सुक्खोॅ दुक्खोॅ रोॅ मतर साथी ही असल हमरोॅ
आदमी माँटी छेकै आकि ई सरंग छेकै
होवेॅ पारेॅ नै कभी-प्रश्नो ई सहल हमरोॅ
आय समुन्दर में छै तूफानो तेॅ आबैवाला
पार उतरै के भी संकल्प छै अटल हमरोॅ
आय जों साथ छियौं तोरोॅ रहनुमा बनी केॅ
हम्में नै होभौं, मतर होतौं - ई गजल हमरोॅ

-12.6.91