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जिन्दगी लागै इक समन्दर रं / अमरेन्द्र

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जिन्दगी लागै इक समन्दर रं
मोॅन थरथर करै छै कायर रं
दूर भै गेलै देवघरे सें शिव
मोॅन अभियो छै हमरोॅ काँवर रं
ऊ अनल पानिये दियेॅ पारेॅ
जेकरोॅ दिल में विरह छै बामर रं
हाथ मिलवै लेॅ जों बढ़ाबै छी
हाथ ओकरोॅ बढ़ै छै अजगर रं
कोय अकड़लोॅ होलोॅ अटट्ट रोटी
कोय धीयोॅ में फूली घीवर रं
मोॅन काँचे जकाँ छै जानी केँ
बात फेकै छोॅ कैन्हें पत्थर रं
देवता सृष्टि रोॅ मरी गेलै
भूत नांचै छै सब अखम्मर रं
लोग आबै सुतै चली दै छै
हम्में बिछलोॅ होलोॅ छी चादर रं

-12.8.91