भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आरो रात कारोॅ होतौं दीया जलैलेॅ रहियोॅ / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:46, 6 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=रेत र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आरो रात कारोॅ होतौं दीया जलैलेॅ रहियोॅ
नींद आबेॅ जों लगौं केकरौ जगैलेॅ रहियोॅ
ई भुक्खड़ोॅ के भरोसै की कखनी टूटी पड़ेॅ
तोहें कोठी में रखी अन्न नुकैलेॅ रहियोॅ
बाघ मारबोॅ छै मना बाघ छौं आबैबाला
इखनी एतनैं तोंय करॉे शोर मचैलेॅ रहियोॅ
हम्मूँ आबै छियौं गर्दन केॅ झुकैलेॅ झुकतें
तोरौ कातिल केॅ बुलाना छौं बुलैलेॅ रहियोॅ
दुख तेॅ झामोॅ हुवै छै आदमी केॅ मांजै छै
बाँटियोॅ नै कहीं, सीन्हैं में जोगैलोॅ रहियोॅ
कल जे ऐतै वैं सजैतै वें सोचतै आगू
आयकोॅ रात ई महफिल केॅ रसैलेॅ रहियोॅ
है कठिन जिनगी के जतरा हेनै केॅ नै कटतौं
मोॅन अमरेन्द्र के गजलोॅ में लगैलेॅ रहियोॅ

-1.3.92