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आरो रात कारोॅ होतौं दीया जलैलेॅ रहियोॅ / अमरेन्द्र

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आरो रात कारोॅ होतौं दीया जलैलेॅ रहियोॅ
नींद आबेॅ जों लगौं केकरौ जगैलेॅ रहियोॅ
ई भुक्खड़ोॅ के भरोसै की कखनी टूटी पड़ेॅ
तोहें कोठी में रखी अन्न नुकैलेॅ रहियोॅ
बाघ मारबोॅ छै मना बाघ छौं आबैबाला
इखनी एतनैं तोंय करॉे शोर मचैलेॅ रहियोॅ
हम्मूँ आबै छियौं गर्दन केॅ झुकैलेॅ झुकतें
तोरौ कातिल केॅ बुलाना छौं बुलैलेॅ रहियोॅ
दुख तेॅ झामोॅ हुवै छै आदमी केॅ मांजै छै
बाँटियोॅ नै कहीं, सीन्हैं में जोगैलोॅ रहियोॅ
कल जे ऐतै वैं सजैतै वें सोचतै आगू
आयकोॅ रात ई महफिल केॅ रसैलेॅ रहियोॅ
है कठिन जिनगी के जतरा हेनै केॅ नै कटतौं
मोॅन अमरेन्द्र के गजलोॅ में लगैलेॅ रहियोॅ

-1.3.92