Last modified on 6 मई 2016, at 16:51

रुठलोॅ रुठलोॅ सब्भे जल छै / अमरेन्द्र

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:51, 6 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=रेत र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रुठलोॅ रुठलोॅ सब्भे जल छै
उम्मीदोॅ में तहियो नल छै
नींद अगर जों आबी जाय तेॅ
टाट केरोॅ टुकड़ो मखमल छै
नै आय तेॅ कल केॅ ही भीजतै
ई तेॅ औरत रोॅ आँचल छै
छाती ठोकी कोय कहौ तेॅ
हमरोॅ जीवन गंगाजल छै
गौर करोॅ तेॅ हर मानुख ही
थोड़े-थोड़ोॅ पर घायल छै
केना नाँचै मन रोॅ हिरना
सुख रोॅ राधे जों ओझल छै
निर्वासित रं ‘आज’ छै हमरोॅ
‘अग्नि परीक्षा’ जहनोॅ ‘कल’ छै