भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नारी / सियाराम प्रहरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:14, 9 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सियाराम प्रहरी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हय कहलोॅ गेलोॅ छै
जहाँ नारी के पूजा होय छै
देवता वहाँ बास करै छै
कैन्हें कि

शक्ति दे देवी नारी छिकै
ऐश्वर्य के देवी नारी छिकै
विद्या विवेक के देवी नारी छिकै
नारी जीवन दै छै
पालन करै छै
संहारो के देवी नारिये छिकै
महिषासुर मर्दिनी छिकै

सभ्भे यही कहै छै
मतर कि
है कन्हों विडम्बना छै
नारी जब कोख में रहै छै
तब जान जाबै के डॉेर
जब जनम लै छै
तब परिवार से ठकुरावै के डर
जवानी में
पूरा जमाना के डर
और जो विवाह भेलै
त जलावै के डर
जों माय नैं बनि सकलै
त दुरदराबै के डर

जों माय बनी गेलै
त आँखी आसू से तर
नारी के बस यहेॅ हाल छै
सामने हय एगो बड़ोॅ सबाल छै

पुरूष के लेली
नारी के सौन्दर्य
ओकरो मांसल काया
कजरारो नयन
लचकलो कमर
हय नर लेली नारी कामिनी छै
मृगनयनी छै गजगामिनी छै।
हय सबके अलावा कि अच्छा है
बढ़िया लागलो छै ओकरा
ओकरोॅ छटपटाहट
पुरूष के ओकरोॅ मान सम्मान स्वाभिमान
तनिको नै सोहाय छै
नै चाहै छै जे नारी ओकरोॅ चंगुल
से मुक्त हुएॅ
यें जें बनी जाय
मतर कि
लगाम पुरूष हाथों मैं रहतै
समानता के अधिकार के है लड़ाय
जो नारी लड़ी रहलोॅ छै
ऊ अब देखावा छै, एहिना छै
केहने कि
पुरूष कहाँ चाहै छै
कि नारी ओकरोॅ चंगुल से
मुक्त हुयेॅ।