भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोकिला शतक / भाग २ / विजेता मुद्गलपुरी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:30, 9 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेता मुद्गलपुरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बिल्ली कूदल
डरल चिड़ैया
चीं!
कुछ नै भेलै
कहै गिदरवा
हुआ!
घोड़ा-गाड़ी
कड़-कों-कड़-कों
हच्च!
कुत्ता प्रहरी
भला लोग पर
भौं!
मूली गाजर
बनल आदमी
खच्च!
जैजें बैठे
खैनी गुटका
पिच्च!
हरदम निन्दा
एकरोॅ-ओकरोॅ
धौ!
बड़ी वेग सें
दौड़ल गाड़ी
पीं।
टायर पुरानोॅ
मोट सवारी
फट्ट।
अब नैतिकता
आ ग-रा-रा
धम्म!
संविधान अरू
लोकतंत्र के
जय।
अपराधी भी
बनल विधायक
जा!
तनी बात पर
तनल दुनाली
धाँय!
काज घिनौना
जन नायक के
थू!
जन-तंत्र के
राजा ऐलै
जिन्दाबाद!
रिस्वत नामे
फाइल दौड़ै
सर्र!
घुप्प अँधरिया
साहब कोठी
झक्क।
नया साल पर
मुर्गा-दारू
गट्ट!
शीश महल में
निन्द न आवै
ओह।
मंहगा जूता
सड़क बिहारी
फच्च।