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दुभरी / कुंदन अमिताभ

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महा अकाल में भी
जे बचलऽ छै
रग-रग टुटलऽ
मानव मनऽ के आश
वहेॅ छेकै दुभरी
लगै छै
कि जरी गेलै
कि मरी गेलै
कि खतम होय गेलै
धरती में बिलाय गेलै
पर रहै छै जिन्दे
मिलै नै छै तनी टा जऽल
कि लहलहाय जाय छै
दुभरी
मानव मनऽ के आश ऐन्हऽ